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Saturday, April 23, 2011

जिसका गुस्सा उसी पर निकालो और सबसे इज्जत से बात करो (पिताजी की दी हुई सीख )


कई दिनों से कविताये तो चेंपे जा रहा था लेकिन ब्लॉग पर एक भी पोस्ट नहीं डाली थी तो सोचा आज पिताजी की सीख वाले खजाने में से कुछ निकाल कर डाल दिया जाए

ये उस समय की बात है जब मै शायद सिर्फ ९-१० साल का रहा हूँगा, उम्र तो ठीक से याद नहीं है लेकिन किस्सा अभी भी ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात हो...

उस समय हमारे घर के एक भाग में एक किरायेदार रहा करते थे और वो साहब कही से सस्ती वाली कपडे धोने वाली साबुन की टिकिया ले कर आ गए थे, जब बात कपडे धोने की आई तो मालूम हुआ की ये टिकिया तो साबुन कम और पत्थर ज्यादा है, उन साहब ने बड़ा गुस्सा दिखाया और इसी बीच ये बात मुझे भी पता चली तो मेरे बाल मन ने उस साबुन को पत्थर मान कर ये तय कर लिया की कोई ऐसा साबुन बेचते हुए दिखे तो उसे खरी खरी सुना देंगे.

कुछ दिनों बाद दो लड़के लगभग मेरी ही उम्र के घर पर आये और उसी तरह के साबुन की टिकिया बेचने के लिए माँ को बड़ी ही इज्जत और प्यार से दिखाने लगे, वो टिकिया देखना थी की मै उन लडको पर भड़क गया और मैंने लगभग चीखते हुए कहा “हमें नहीं चाहिए तुम्हारे पत्थर ले जाओ तुम इसे यहाँ से”
मेरा जो व्यव्हार था वो कुछ ऐसा था मानो उन लडको ने वो साबुन की टिकिया बेचने की कोशिश कर के कोई अपराध कर दिया हो, और उनके चेहरे पर जो अवसाद और उदासी की लकीरे दिखी थी उसने मुझे भी सोचने पर मजबूर कर दिया था.

पिता जी मुझे लगभग डाँटते हुए कहा “किस बदतमीजी से बात कर रहे हो माफ़ी मांगो उनसे” उसके बाद उन लडको को अपने पास बुला कर बैठाया उन्हें प्यार से पानी पिलाया बिस्किट खिलाये और उसके बाद बोले ये लड़का तो पागल है तुम इसकी बात का बुरा मत मानो. उसके बाद बड़े प्यार से उन लडको से बोले “देखो बेटा, ये जो साबुन की टिकिया तुम लाये हो ये किसी और ने पहले खरीदी थी और वो पत्थर के जैसी कड़क निकली थी जो किसी भी काम की नही रहेगी, इस लिए ये खरीदने का कोई मतलब नहीं रहेगा और तुम भी कुछ ऐसा सामान ही बेचो जो तुम्हे खुद भरोसा हो की अच्छा है ताकि लोग तुमसे बार बार खरीदे और तुम्हारा विश्वास भी करें”. उन लडको ने पिता जी को धन्यवाद कहा और बड़े खुश मन से घर से गए.

फिर पिता जी ने मुझे समझाते हुए मुझसे पूंछा “क्या उन लडको ने मेरा कोई अपमान करा था या मेरे पैसे खा के भाग गए थे या उन्होंने मुझे ये सामान बेचा था जो खराब निकल गया” मैंने ना में सर हिला दिया . फिर पिता जी बोले उन लडको ने कितने प्यार से बात की थी, कितना सम्मान दिखाया था क्या उस सम्मान का जवाब हमें इस तरह से देना चाहिए बिना ये सोचे की जो नुकसान हमने पहले उठाया है उसमे सामने वाले व्यक्ति की कोई गलती है भी या नहीं.

फिर पिता जी बोले अगर तुम उन्हें यही बात प्यार से बोल देते की भाई हमें जरूरत नहीं है इस सामान की तो वो खुद ही चले जाते या उन्हें बिना गुस्सा किये ये भी कह देते की ये सामान हमने पहले लिया था जो की खराब निकल गया तो वो यूँ ही शांति से चले जाते

पिता जी ने तब जो सीख दी थी अब तक काम में आती है और हर बार ऐसे किसी मौके पर किसी नुकसान पर सामने आये व्यक्ति पर गुस्सा करने के बजाय ये जरूर सोच लेता हूँ की क्या इस गुस्से का हक़दार सामने वाला व्यक्ति है भी जो उसे मै गुस्सा दिखाऊँ. इस एक सीख से मैंने किसी का गुस्सा किसी पर ना उतारने वाली बात सीखी थी जो सदा तरक्की में मदद करती गई है 

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