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Thursday, March 31, 2011

माँ का थप्पड़, कुछ शब्द और अलविदा सिगरेट


ये करीब ६ साल पुरानी बात होगी जब मैंने सिगरेट को आखरी बार मुह से लगाया था, तब माँ के एक थप्पड़ और कुछ शब्दों ने ऐसी चोट पहुंचाई की सिगरेट को जीवन भर के लिए अलविदा कह दिया.

ये उस समय की बात है जब मेरे दोस्त एक बड़ा सा कमरा ले कर पढ़ा करते थे और मै उनके साथ ही रहता था, पढाई तो छोड़ ही चूका था वैसे वो लोग भी कौन सा पढते थे.

उनमे से एक दोस्त और मै रात के ११ बजे गाडी उठा कर घर के बाहर निकलते थे और सीधे राजवाडा पहुँच जाते थे, वहाँ पहुँच कर पहले एक क्लासिक गोल्ड का पैकेट लेते और फिर चाय की दुकान पर पहुँच जाते थे.

दोनों लोग एक ही सिगरेट सुलगा कर बैठ जाते थे और चाय पीते जाते थे और सिगरेट फूंकते रहते थे. चाय खतम हुई तो गाड़ी ले कर शहर की सड़के तब तक नापते रहते थे और जब तक पूरा पैकेट धुंवा उड़ाते हुए खतम ना हो जाये.उस समय हमारी सिगरेट पीने की एक ये शर्त थी की कभी भी माचिस या लाइटर मांग कर सिगरेट नहीं पियेंगे इस लिए हमेशा जेब में लाइटर जरूर होता था.

एक दिन हुआ यूँ की माँ ने पैंट की जेब से लाइटर निकाल लिया और बोली इसका क्या करता है.

मै माँ से कभी झूठ बोलना पसंद नहीं करता था तो सीधे कहा "सिगरेट पीता हूँ और क्या".

इस जवाब के साथ ही मेरे गाल पर एक बड़ा ही शानदार थप्पड़ पड़ा और उसके बाद माँ बोली "अब तू मुझसे झूठ भी बोलने लगा है!"

मा के इस थप्पड़ और इन शब्दों के बाद फिर कभी सिगरेट को मुह से लगाने का मन नहीं हुआ और तब से सिगरेट और मेरा बैर शुरू हो गया.

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